आत्मा क्या है? – विज्ञान और वेदों की दृष्टि से

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“मैं कौन हूँ?” यह प्रश्न मानव जाति की सबसे गूढ़ और प्राचीन जिज्ञासा है। इसका उत्तर खोजते हुए हम आत्मा की अवधारणा तक पहुँचते हैं। आत्मा (Soul या Ātman) एक ऐसा विषय है जिसे लेकर वेदों, उपनिषदों, दर्शन शास्त्रों और अब आधुनिक विज्ञान तक ने गहराई से विचार किया है। लेकिन आत्मा वास्तव में है क्या? क्या यह केवल एक धार्मिक अवधारणा है या इसका वैज्ञानिक आधार भी है?

इस ब्लॉग में हम आत्मा को विज्ञान और वेदों दोनों की दृष्टि से समझने का प्रयास करेंगे।


वेदों की दृष्टि से आत्मा

1. आत्मा का स्वरूप

वेद और उपनिषद आत्मा को नित्य, शुद्ध, बुद्ध, मुक्त बताते हैं। आत्मा न तो जन्म लेती है, न मरती है। वह शरीर से अलग, एक स्वतंत्र सत्ता है।

मुण्डकोपनिषद् में कहा गया है:

“न जायते म्रियते वा कदाचित्
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे”

– मुण्डकोपनिषद्

(भावार्थ: आत्मा न कभी जन्म लेती है, न कभी मरती है, वह अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर नष्ट होने पर भी आत्मा नष्ट नहीं होती।)

2. आत्मा और शरीर का संबंध

भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं:

“वासांसि जीर्णानि यथा विहाय
नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णा
न्यन्यानि संयाति नवानि देही॥”

– गीता 2.22

(भावार्थ: जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है, वैसे ही आत्मा पुराने शरीर को छोड़कर नया शरीर धारण करती है।)

वेदांत दर्शन आत्मा को ब्रह्म का अंश मानता है — “अहं ब्रह्मास्मि” (मैं ही ब्रह्म हूँ)। यानी हर जीव की आत्मा एक ही परम सत्ता का हिस्सा है।


विज्ञान की दृष्टि से आत्मा

अब प्रश्न उठता है — क्या आधुनिक विज्ञान आत्मा के अस्तित्व को स्वीकार करता है?

1. विज्ञान का आत्मा को लेकर दृष्टिकोण

विज्ञान, विशेष रूप से भौतिकी (Physics) और न्यूरोसाइंस (Neuroscience), आत्मा जैसी अमूर्त चीज को प्रत्यक्ष प्रमाणों के बिना नहीं मानता। आत्मा का कोई “माप” नहीं है, न ही इसे किसी यंत्र से पकड़ा जा सकता है। लेकिन कुछ वैज्ञानिक प्रयोग और सिद्धांत आत्मा की अवधारणा के करीब आते हैं।

2. चेतना (Consciousness) और आत्मा

आधुनिक वैज्ञानिकों ने आत्मा की जगह “चेतना” (Consciousness) शब्द को केंद्र में रखा है। चेतना वह शक्ति है जो हमें सोचने, अनुभव करने और आत्म-चिंतन करने की क्षमता देती है। यह आत्मा का ही एक वैज्ञानिक संस्करण माना जा सकता है।

प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी सर रॉजर पेनरोज (Roger Penrose) और डॉ. स्टुअर्ट हैमरॉफ ने “Orch-OR Theory” (Orchestrated Objective Reduction) प्रस्तावित की, जिसमें कहा गया कि मानव मस्तिष्क की कोशिकाओं में चेतना एक क्वांटम स्तर पर उत्पन्न होती है। यह चेतना किसी भौतिक प्रक्रिया से परे है, और मृत्यु के बाद भी अस्तित्व में रह सकती है।

3. मृत्यु के बाद चेतना का अस्तित्व?

कुछ डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने Near Death Experience (NDE) पर शोध किया है, जहाँ मरणासन्न अवस्था के रोगियों ने अपने शरीर के बाहर होने की अनुभूति, प्रकाश की ओर जाने का अनुभव और दिव्य उपस्थिति को महसूस किया। इन्हें विज्ञान स्पष्ट रूप से सिद्ध नहीं कर सका है, परंतु यह आत्मा के अस्तित्व की ओर संकेत करता है।

डॉ. इबन अलेक्जेंडर, एक न्यूरोसर्जन, ने अपनी किताब Proof of Heaven में लिखा कि वे ब्रेन डेड होने के बावजूद दिव्य अनुभवों से गुजरे और उन्होंने आत्मा की उपस्थिति को महसूस किया।


आत्मा का अनुभव – विज्ञान और वेद का मिलन

वेद जहाँ आत्मा को दिव्य और शाश्वत सत्ता मानते हैं, वहीं विज्ञान धीरे-धीरे चेतना और आत्म-अनुभूति की गहराइयों में प्रवेश कर रहा है। आज का विज्ञान आत्मा को सिद्ध नहीं कर पाया है, लेकिन वह चेतना को केवल न्यूरॉन्स का परिणाम मानने से आगे बढ़ चुका है

माइंड-मैटर रिलेशन (मन और पदार्थ का संबंध) आज वैज्ञानिकों के लिए एक जटिल पहेली है। यह उसी प्रश्न को जन्म देता है — क्या शरीर केवल एक “कंटेनर” है? क्या कुछ ऐसा है जो शरीर के नष्ट हो जाने पर भी बचा रहता है?


निष्कर्ष: क्या आत्मा का अस्तित्व है?

  • वेदों के अनुसार, आत्मा नित्य है, शरीर में वास करती है और मृत्यु के बाद शरीर को छोड़ देती है। आत्मा पुनर्जन्म लेती है जब तक वह मोक्ष (मुक्ति) न पा ले।
  • विज्ञान आत्मा को स्वीकार नहीं करता, लेकिन चेतना और अनुभव की गहराइयों को देखकर आत्मा जैसी सत्ता की संभावना से इनकार भी नहीं करता।
  • विज्ञान और वेद दोनों हमें यह सिखाते हैं कि हम केवल शरीर नहीं हैं। हमारे भीतर कोई ऐसा तत्व है जो देख रहा है, अनुभव कर रहा है, और अस्तित्व को जान रहा है।
  • आत्मा का अंतिम सत्य आज भी खोज का विषय है। लेकिन जब हम ध्यान, साधना और आत्मचिंतन करते हैं, तो शायद हमें इसका अनुभव हो सकता है।

अंतिम विचार

आत्मा का विषय केवल दार्शनिक या धार्मिक नहीं है, बल्कि यह हर व्यक्ति के अस्तित्व का मूल प्रश्न है। क्या आप सिर्फ यह शरीर हैं? या इस शरीर में कोई “मैं” भी है, जो शाश्वत है?

शास्त्र कहते हैं – हाँ, वह ‘मैं’ आत्मा है।
और विज्ञान धीरे-धीरे उसी ‘मैं’ को पहचानने की कोशिश कर रहा है।


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आपकी दृष्टि में आत्मा क्या है? क्या आपने कभी आत्मिक अनुभव किया है?

हर हर महादेव! 🙏🕉️

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